मनुष्य का बोलकर, लिखकर, सुनकर व पढ़कर, अपने मन के विचारों तथा भावों का आदान-प्रदान करना भाषा कहलाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो – जिस साधन या विधि के द्वारा हम अपने विचारों को लिखित तथा कथित रूप से अन्य लोगों को समझा सके और अन्य लोगों के विचारों तथा भावों को समझ सके, उस साधन को भाषा कहा जाता है।
सधारणयता : मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को भाषा कहा जाता है।
आदिकाल (पुराने समय) में जब आदिमानव भाषा का प्रयोग नहीं करते थे तो वह एक दूसरे के विचारों तथा भावों को समझने के लिए संकेतों का प्रयोग करते थे, परंतु संकेतों द्वारा किसी बात को समझाना या समझना कठिन कार्य था।
उस समय आदिमानव को अपनी बात समझाने तथा दूसरों की बात समझने के लिए काफी परेशानी हुआ करती होगी, उसने इस परेशानी को दूर करने के लिए अपने मुख से अलग-अलग ध्वनियाँ निकालना शुरू किया और इन ध्वनियों से अलग-अलग शब्द बनाना शुरू किया।
फिर आदिमानव संकेतों की जगह ध्वनियों का प्रयोग करने लगे और इसी से भाषा का विकास हुआ, भाषा के द्वारा ही मानव के विचारों और भावनाओं को समझा जा सकता है, भाषा के लिए कोई उचित परिभाषा नहीं है।
लेकिन फिर भी बहुत सारे भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषाएं प्रस्तुत की है, परंतु हर परिभाषा में कुछ ना कुछ त्रुटी रह जाती है।
आपको यह बात ज्ञात ही होगी कि हिंदी भाषा को “संस्कृत” भाषा का एक अंग माना जाता है, और संस्कृत के ‘भाष धातु’ से ही भाषा शब्द को लिया गया है, जिसका अर्थ माना जाता है – बोलना
भाषा के उदहारण (Bhasha ke udaharan)
नेता लोग अपनी रैली में बोलकर लोगों को समझाते हैं, और उनकी रैली में आए लोग उनकी बात सुनकर समझते हैं।
हमारे बड़े बोलकर अपने भाव प्रकट करते हैं, और हम उनकी बात सुनते हैं और समझते हैं।
इसी प्रकार से हम लोग अपनी बात को लिखकर अध्यापक के सामने प्रकट करते हैं और अध्यापक हमारी लिखी गई बात को पढ़कर हमारा मूल्यांकन करते हैं।
संसार के सभी मनुष्य एक दूसरे के मन के भावों को समझने के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं, हालांकि भाषा हर स्थान में अलग-अलग होती है, लेकिन भाषा का एक ही उद्देश्य होता है वह है मनुष्य द्वारा एक दूसरे के विचारों को समझना तथा समझाना।
पशु पक्षियों की बोलियां को भाषा नहीं कहा जाता है, सिर्फ मनुष्य की बोलियों को भाषा कहा जाता है।
भाषा की परिभाषाएं (Bhasha ki paribhasha)
पतंजली के अनुसार – भाषा संचार की एक प्रणाली है, जिसके द्वारा मनुष्य स्वयं को अभिव्यक्त करता है।
आचार्य देवनार्थ शर्मा के अनुसार – जब मनुष्य उच्चारण के लिए ध्वनि संकेतों की मदद से परस्पर विचार-विनिमय में करते हैं तो उस संकेत प्रणाली को भाषा कहा जाता है।
ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के अनुसार – भाषण और लेखन में संचार की प्रणाली जो किसी विशेष देश या क्षेत्र के लोगों द्वारा उपयोग की जाती है, भाषा कहलाती है।
जॉन डूई अनुसार – भाषा जानने का साधन या पूछताछ का उपकरण है।
उपरलिखित परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं, कि भाषा वह साधन है जिसके द्वारा लोग अपने विचारों का लिखित और कथित रूप से आदान-प्रदान करते हैं। हर क्षेत्र में रहने वाले लोगों की भाषा अलग-अलग हो सकती है, लेकिन भाषा का एक ही उद्देश्य है वह है विचारों का विनिमय करना।
भाषा के भेद (Bhasha ke bhed)
भाषा के तीन प्रकार की होती है
(1) मौखिक भाषा
(2) लिखित भाषा
(3) सांकेतिक भाषा
(1) मौखिक भाषा (Maukhik bhasha) – जब व्यक्ति अपने विचारों को बोलकर दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाता है तो उसे मौखिक भाषा कहा जाता है उदाहरण के लिए जब एक नेता रैली निकालता है तो वह मौखिक रूप से बोल कर अपने विचारों को जनता तक पहुंचाता है और स्कूल में अध्यापक भी अपने विचारों को मौखिक रूप से बोलकर बच्चों को पढाता है और उन्हें समझाता है।
मौखिक भाषा को समझाने के कुछ उदाहरण इस प्रकार है – मोबाइल, टेलीफोन, भाषण ,बातचीत करना, रेडियो, टेलिविजन, मूवी आदि।
मौखिक भाषा की विशेषताएं –
- मौखिक भाषा भाषा का एक अस्थाई रूप है।
- मौखिक भाषा उच्चारित होते ही समाप्त भी हो जाती है।
- बोलने वाला और सुनने वाला आमने-सामने होने चाहिए तभी मौखिक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।
- मौखिक भाषा की महत्वपूर्ण इकाई ध्वनि है और इन्हीं ध्वनियों के मिलने से शब्द का निर्माण होता है जिनका प्रयोग वाक्य को बनाने के लिए और वाक्य का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता है।
(2) लिखित भाषा (Likhit bhasha) – जब विचारों का आदान-प्रदान लिखित तौर पर किया जाता है तो उसे लिखित भाषा का नाम दिया जाता है इसका एक उदाहरण मैं और आप हो इस लेख को मैंने लिखित भाषा में लिखा है और आप इस लेख को लिखित भाषा से ही पढ़ रहे हो।
इसमें 2 लोगों का किरदार मुख्य होता है एक लिखने वाला और दूसरा पढ़ने वाला जैसे इस लेख में लिखने वाला मैं हूं और पढ़ने वाले आप हो लिखने वाले के समान ही पढ़ने वाले का महत्व भी लिखित भाषा में मायने रखता है।
लिखित भाषा के कुछ उदाहरण – पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि
जिस प्रकार से अलग-अलग क्षेत्र में रहने वाले लोगों की मौखिक भाषा अलग-अलग होती है, उसी प्रकार अलग-अलग क्षेत्र में रहने वाले लोगों की लिखित भाषा भी अलग-अलग होती है, लेकिन लिखित भाषा का भी उद्देश्य एक ही होता है – लिखने और पढ़ने वाले के बीच विचारों का आदान प्रदान करना।
लिखित भाषा की विशेषताएं –
- लिखित भाषा भाषा का एक स्थाई प्रकार है।
- लिखित भाषा में व्यक्ति अपने विचारों को लंबे समय के लिए सुरक्षित रख सकता है।
- लिखित भाषा में लिखने वाले और पढ़ने वाले का आमने सामने होना जरूरी नहीं है, लिखने वाला कहीं से भी लिख सकता है, पढ़ने वाला कहीं पर भी पड़ सकता है।
- लिखित भाषा की आधारभूत इकाई वर्ण है जो उच्चारण की गई ध्वनियों को उपस्थित करता है।
(3) सांकेतिक भाषा (Sanketik bhasha) – जब इशारों के द्वारा बात समझी जाए और समझाई जाए तो उसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है।
इसमें संकेतों द्वारा आपस में वार्तालाप किया जाता है, जैसे – कोई गूंगा किसी से बात करता है तो वह संकेतिक भाषा का प्रयोग करता है, सांकेतिक भाषा का अध्ययन व्याकरण से नहीं किया जा सकता।
सांकेतिक भाषा की विशेषताएं –
- सांकेतिक भाषा को व्याकरण में नहीं पढ़ाया जाता।
- सांकेतिक भाषा के लिए समझने और समझाने वाले का आमने सामने होना आवश्यक है।
भाषा के वभिन्न रूप (Bhasha ke roop)
हर देश में भाषा के तीन रूप पाए जाते है-
(1) बोलियाँ – जब भाषा का प्रयोग किसी स्थान विशेष पर रहने वाले लोग आपस में बातचीत के लिए करते हैं, तो उसे बोली कहा जाता है। उस बोली (भाषा) को सिर्फ उस स्थान पर रहने वाले लोग ही प्रयोग करते हैं।
(2) परिनिष्ठित भाषा – जब किसी बोली का प्रयोग एक से अधिक स्थानों पर किया जाने लगे और उस बोली को व्याकरण से परिष्कृत किया जाए तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है, इस भाषा का प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में किया जाता है।
(3) राष्ट्र्भाषा – जब किसी भाषा को देश के अत्यधिक भागों में बोला और समझा जाता है तो उस भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है, जैसे – भारत में हिंदी भाषा को लगभग संपूर्ण भारत में समझा और बोला जाता है, इसलिए यह भारत की राष्ट्रभाषा है।
जर्मनी देश में जर्मन भाषा को ज्यादातर बोला और समझा जाता है, इसलिए जर्मनी की राष्ट्रभाषा जर्मन भाषा है। इसी प्रकार से प्रत्येक राष्ट्र (देश) की अपनी अलग एक राष्ट्रभाषा होती है, दो या उससे अधिक देशों की राष्ट्रभाषा एक जैसी भी हो सकती है।