संधि किसे कहते हैं भेद, परिभाषा, उदाहरण

संधि किसे कहते हैं

हिन्दी में संधि शब्द का तात्पर्य है – दो या दो से अधिक वर्णों या शब्दों का योग (मेल)।

अतः हिन्दी व्याकरण में जब दो वर्णों या दो ध्वनियों का योग किया जाता है, तो शब्दों के वास्तविक रूप में परिवर्तन हो जाता है, इस परिवर्तन को ही संधि कहा जाता है। संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल अर्थात जब दो या दो से अधिक वर्ण मिलते है और एक शब्द बनाते है तो इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए,

·        मनः + बल = मनोबल

·        यथा + उचित =यथोचित

·        सूर्य + उदय = सूर्योदय

·        लोक + कल्याण = लोकल्याण

·        महा + देव = महादेव

·        मान + चित्र = मानचित्र

·        छाया + चित्र = छायाचित्र

उपरोक्त उदाहरणों से आप समझ सकते हैं कि किस तरह जब दो शब्दों को मिलाया जाता है, तो पहले शब्द के आखिरी अक्षर और दूसरे शब्द के पहले अक्षर में किस तरह परिवर्तन आता है।

उपयुक्त दिए गए सभी उधारणों में जब दो शब्द मिल रहे है तो एक नया शब्द बन रहा है, शब्दों के मिलने से इनके अर्थ में थोड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है, जैसे – मान + चित्र के मिलने से मानचित्र शब्द बना जिसका अर्थ होता है किसी चित्र का मान ज्ञात करना परन्तु जब ये दो शब्द मिल जाते है  का इसका अर्थ हो जाता है किसी स्थान के नक़्शे का मान ज्ञात करना।

दोनों वर्णों की संधि होने पर ध्वनियों में बदलाव आता है, साथ ही शाब्दिक अर्थ भी बदल जाता है।

संधि की परिभाषा क्या है

दो वर्णों के योग से उत्पन्न हुए परिवर्तन ही संधि है। इससे दो निर्दिष्ट वर्णों के रूप में विकार होता है और मिलने वाले शब्दों के योग से शाब्दिक अर्थ बदल जाता है।

शब्दों के मेल से होने वाले रूपांतर को व्याकरण में संधि के रूप में अध्ययन किया जाता है।

संधि – विच्छेद किसे कहते हैं

दो या दो अधिक शब्दों के योग से बने नये शब्द के रूप, अर्थ और ध्वनियों में परिवर्तन आ जाता है। फलस्वरूप शब्द के उच्चारण और लेखन, दोनों के ही रचनाओं में भिन्नता आ जाती है।

लेकिन जब उन शब्दों को पृथक किया जाता है तो वास्तविक शब्द अपने मूल रूप में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया को ही संधि-विच्छेद कहा जाता है।

उदाहरण के लिए,

·         महर्षि = महा + ऋषि

·         लोकोक्ति = लोक + उक्ति

·         महाशय = महा+आशय

पहले उदाहरण को अगर आप ध्यान से देखें तो आप पायेंगे –

महर्षि एक ही शब्द का प्रतीत होता है। लेकिन अगर हम इन्हें व्याकरण के नियमों के अंतर्गत पृथक करें तो ‘महा’ और ‘ऋषि’ शब्द अपने मूल रूप में आ जाते हैं।

संधि के कितने भेद होते हैं

संधि के तीन भेद या प्रकार होते हैं

1)           स्वर संधि

2)           व्यंजन संधि

3)           विसर्ग संधि

संधि के मूल रूप से तीन ही प्रकार होते हैं। लेकिन संधि के पहले तत्व ‘स्वर संधि’ के पाँच प्रकार होते हैं। जिनका अध्ययन आप आगे करने वाले हैं।

अन्य दो संधियों ‘व्यंजन और विसर्ग’ संधि के कोई प्रकार नहीं हैं,उनमें कुछ नियमों का पालन होता है। चलिये, तीनों प्रकारों को उदाहरण सहित समझते हैं।

1)  स्वर संधि किसे कहते हैं

जब दो स्वर वर्णों का मेल किया जाता है तो उससे उत्पन्न हुए विकार को स्वर संधि कहा जाता है।

(“अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ” – ये सारे वर्ण, स्वर वर्ण कहे जाते हैं।)

उदाहरण के लिए,

·        अति + अधिक = अत्यधिक (इ + अ = य)

·        कवि + ईश्वर = कवीश्वर (इ + ई = ई)

·        विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)

स्वर संधि के पाँच प्रकार होते हैं:

क)    दीर्घ संधि

ख)    गुण संधि

ग)     वृद्धि संधि

घ)    यण् संधि

ङ)    अयादि संधि

इसके सभी प्रकारों को समझना आवश्यक है, इसलिए इन्हें एक-एक करके समझते हैं।

क)  दीर्घ संधि से क्या तात्पर्य है

दो समान स्वरों की संधि, दीर्घ संधि कहलाती है। दो समान स्वर चाहे वो लघु हों या दीर्घ हों, दोनों मिलकर दीर्घ बन जाते हैं।

कहने का तात्पर्य है कि यदि दोनों पदों में ’ ’, ’, ’, ’, ’ जैसे वर्ण आये, तो वो दोनों मिलकर ’ ’ या बन जाते हैं।

उदाहरण के लिए,

·        कोण + अर्क = कोणार्क

·        लज्जा + भाव = लज्जाभाव

·        गिरि + ईश = गिरीश

·        पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश

ख)  गुण संधि से क्या तात्पर्य है

यदि स्वर वर्णों की संधि में या के बाद या ’ ’या , ’हो तो वे विकार से और अर्बन जाते हैं।

उदाहरण के लिए,

·        देव +ईश =देवेश

·        चन्द्र +उदय =चन्द्रोदय

·        महा +उत्स्व =महोत्स्व

·        गंगा+ऊर्मि =गंगोर्मि

ग)   वृद्धि संधि से क्या तात्पर्य है

यदि या के साथ या वर्णों का योग हो, तो उनके स्थान पर बन जाता है। इस संधि को वृद्धि संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए,

·        एक +एक =एकैक

·        वन+ओषधि =वनौषधि

·        महा +औषध =महौषध

घ)  यण् संधि से क्या तात्पर्य है

जब या , ’या के वर्णों के साथ भिन्न स्वर वर्णों का मेल होता है, तो विकार कुछ इस प्रकार होते हैं:

·        का य्

·        ’ ’का व्और

·        का र् हो जाता है।

इसके साथसाथ दूसरे वाले शब्द के पहले स्वर की मात्रा य्, व्, र्में लग जाती है। इस प्रकार की स्वर संधि को यण् संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए,

·        अति +आवश्यक =अत्यावश्यक

·        अति +उत्तम =अत्युत्तम

·        अनु +आय =अन्वय

·        मधु +आलय =मध्वालय

·        गुरु +औदार्य =गुवौंदार्य

·        पितृ +आदेश=पित्रादेश

ङ)  अयादि संधि से क्या तात्पर्य है

अयादि संधि का विकार तब उत्पन्न होता है जब ,,या के बाद किसी अलग स्वर वर्ण का योजन होता है। ऐसी स्थिति में,

·        का अय

·        का आय

·        का अवऔर

·        का आव के रूप में रूपांतर हो जाता है।

उदाहरण के लिए,

·        चे +अन =चयन

·        नै +अक =नायक

·        पौ +अन =पावन

·        पौ +अक =पावक

2)  व्यंजन संन्धि

यदि योग होने वाले दो वर्णों में से एक वर्ण व्यंजन हो और दूसरा व्यंजन या वर्ण (कोई भी एक हो), तो वर्णों की ये संधि ‘व्यंजन संधि’ कहलाती है।

उदाहरण के लिए,

·        अनु + छेद = अनुच्छेद

·        सम् +गम =संगम

·        उत्+लास =उल्लास

·        सत्+वाणी =सदवाणी

·        दिक्+भ्रम =दिगभ्रम

·        वाक्+मय =वाड्मय

·        द्रष् +ता =द्रष्टा

·        सत् +चित् =सच्चित्

·        उत्+हार =उद्धार

·        परि+छेद =परिच्छेद

3)  विसर्ग संधि (Visarg sandhi)

वर्णों और शब्दों की ऐसी संधि जिसमें पहले के अंत में विसर्ग (:) ध्वनि होती है, तो उत्पन्न हुए विकार को विसर्ग संधि कहा जाता है।

उदाहरण के लिए,

·        प्रातः + काल = प्रातःकाल

·        मनः +भाव =मनोभाव

·        निः +पाप =निष्पाप

·        निः+रव =नीरव

·        निः+विकार =निर्विकार

·        निः+चय=निश्रय

·        मनः+अभिलषित: =मनोऽभिलषित

संधि का औचित्य

इस पूर्ण लेख से आपको हिन्दी व्याकरण के संधि के बारे में पूरी जानकारी मिल गयी होगी। अब आपको संधि का महत्व भी समझ आ गया होगा।

संधि, भाषा के लिए कई नये शब्दों की रचना में मदद करती है। साथ ही, इससे  विपरीत हमें शब्दों के मूल रूप का भी पता चलता है।

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