उत्तक किसे कहते है परिभाषा, प्रकार

किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के एक समूह को जिन की उत्पत्ति एक समान हो तथा वे सभी कोशिकाएं कोई विशेष कार्य करती हो को उत्तक कहा जाता है। 

साधारण शब्दों में कहा जाए तो जीव के शरीर में बहुत सी कोशिकाओं के एक समूह को उत्तक कहा जाता है इन कोशिकाओं से बने उत्तकों कि अधिकांश आकृति एवं आकार एक समान ही होते हैं। 

परंतु कभी-कभी कुछ एक उत्तकों का आकार एवं आकृति समान नहीं होती लेकिन इसके बावजूद भी उनकी उत्पत्ति एवं उनके सभी कार्य एक समान ही रहते हैं। 

उत्तकों के आकार एवं आकृति में समानता हो या असमानता हो लेकिन उनकी उत्पत्ति एवं कार्य समान ही रहेंगे। 

बहुत सी कोशिकाएं एक समूह में मिलकर एक उत्तक का निर्माण करती है तथा इन सभी उत्तकों की समान रूप से संरचना होती है और इन सभी उत्तकों के कार्य भी एक जैसे ही होते हैं। कोशिकाओं के समूह से बने उत्तक के अध्ययन को उत्तक विज्ञान कहा जाता है। 

जो जीव एक कोशिकीय होते हैं उनके शरीर के अंदर भी जीवन की सभी क्रियाएं उत्पन्न होती है लेकिन उनमें उत्तकों का निर्माण नहीं होता। 

परंतु बड़े जीव जैसे मनुष्य, गाय, बैल, शेर आदि में बहुत सी कोशिकाएं होती है और इन जीवों में कोशिकाएं गुणन करके कोशिकाओं के समूह या बहुकोशकीय अवस्था ग्रहण कर लेती है। 

कोशिकाओं की इस बबहुकोशकीय अवस्था में वह सभी कोशिकाएं अलग-अलग प्रकार के कार्य को करने के लिए अनुकूलित हो जाती है इन कोशिकाओं से मिलकर बना उत्तक लगभग समान प्रकार का कार्य करता है या उत्तकों में पाई जाने वाली कोशिकाएं एक समान ही कार्य करती है। 

प्रया: उत्तक एक समान और एक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं परंतु कुछ उत्तक अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर भी बनते हैं। 

विज्ञान के अनुसार पादप भी जीवित होते हैं और इन पादपों की मूलभूत आवश्यकताएं होती है जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती है तथा इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन पादपों में अनेक प्रकार के क्रियाएं होती रहती हैं। 

लेकिन पादपों की शरीर की क्रियाएं तथा अन्य जंतुओं के शरीर में होने वाली क्रियाएं बिल्कुल अलग होती है जिस कारण से इन पादपों के उत्तक जंतुओं के ऊतकों से अलग होते हैं और पादपों के उत्तक शरीर में होने वाली उनकी क्रिआओं के लिए अनुकूलित होते हैं। 

उत्तक कितने प्रकार के होते है – उत्तक विज्ञान में उत्तकों को छह प्रकार का माना जाता है

1. जन्तु ऊतक 

2. संयोजी ऊतक

3. पेशी ऊतक

4. जनन ऊतक

5. पादप ऊतक

6. स्थाई उत्तक 

जन्तु ऊतक (animal Tissue) -जंतुओं की कोशिकाओं के समूह से मिलकर बने उत्तक को जंतु उत्तक कहा जाता है उसको का कार्य समान होता है तथा कोशिकाओं के इस समूह का उद्गम, संरचना एवं कार्य समान होता है। 

जन्तु ऊतक मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है – 

1. उपकला ऊतक या एपिथीलियमी ऊतक (epithelial tissue) 

2. संयोजी ऊतक (connective tissues)

3. पेशी ऊतक (muscular tissues)

4. तंत्रिका ऊतक (nervous tissues)

5. जनन ऊतक

1. उपकला ऊतक या एपिथीलियमी ऊतक (epithelial tissue) – ये उत्तक लगभग प्रत्येक जंतुओं के शरीर के ऊपरी भाग पर पाया जाता है और यह जंतुओं के शरीर में पाया जाने वाला सबसे सामान्य उत्तक माना जाता है। 

और यह उत्तक लगभग सभी जंतुओं के सभी अंगों की ऊपरी परत पर होता है और यही परत एक अनवरत स्तर का निर्माण करती है इस उत्तक की प्राय: सभी कोशिकाएं एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई होती है। 

आकार, आकृति एवं व्यवस्था के आधार पर उपकला उत्तकों को निम्नलिखित भागों में बांटा जाता है – 

(a) साधारण उपकला ऊतक (Simple squamous epithelial tissue) –

इस प्रकार के उत्तक शरीर के अंदर फेफड़ों के वायु कोष में तथा हृदय की रक्त वाहिनिओं में और लसीका वाहिनिओं की दीवार की ऊपरी परत में पाए जाते हैं। 

जिनका मुख्य कार्य पदार्थों का वितरण एवं छनन करना होता है और इनके इसी कार्य से वितरण एवं छनन का आवागमन संभव हो पाता है और उन पदार्थों का स्त्राव होता है जो चिकनाहट पैदा करते हैं। 

(b) स्तंभाकार उपकला ऊतक (Simple columner epithelial tissue) –

इस प्रकार के उत्तक महिला की गर्भाशय नली और गर्भाशय आदि के अंदर पाया जाता है तथा इसके अलावा यह उत्तक पाचन नली एवं मूत्राशय की ऊपरी परत में पाया जाता है जिसका प्रमुख कार्य अवशोषण, म्यूकस तथा एंजाइम का संश्लेषण करना होता है। 

(c) सरल घनाकार ऊतक (Simple cuboidal epithelial tissue) –

इस प्रकार के उत्तक ग्रंथियों के स्त्रावी भाग की विभिन्न प्रकार की नलियों में पाए जाते हैं इसके अलावा यह उत्तक वृक्क नलिकाओ में भी पाए जाते हैं। यह उत्तर इन नालिओं के ऊपरी भाग या ऊपरी परत में पाए जाते हैं इनका प्रमुख कार्य स्त्रावण एवं अवशोषण करना होता है। 

(d) स्तरित शल्की ऊतक (Stratified Squamous epithelial tissue) –

स्तरित शल्की उपकला के उत्तक इसोफैगस, मुख एवं योनि में पाए जाते है तथा इनका प्रमुख कार्य घर्षण को कम करके इनकी क्षति को कम करना होता है।

(e) स्तरित घनाकार ऊतक (Stratified cuboidal epithelial tissue) –

इस प्रकार के उत्तक पसीने की ग्रंथियों, लार ग्रंथियों एवं स्तन ग्रंथियों में पाए जाते हैं जिनका प्रमुख कार्य इनकी सुरक्षा करना होता है। स्तरित घनाकार ऊतक इन ग्रंथिओं के ऊपरी भाग में या स्तर पर पाए जाते हैं और यह इनकी पूर्ण रूप से रक्षा करते हैं। 

(f) स्तरित स्तंभाकार ऊतक (Pseudostratified epithelial tissue) –

इस प्रकार के उत्तर पुरुष की मूत्र उत्सर्जन नली में पाए जाते हैं तथा इसके अलावा अन्य ग्रंथियों की नालियों में भी पाए जाते हैं जिनका प्रमुख कार्य स्त्रावण एवं सुरक्षा का कार्य करना होता है। 

संयोजी ऊतक (connective tissues) – जंतुओं के शरीर में उस प्रकार के उत्तक भी पाए जाते हैं जो अन्य उत्तकों को जोड़ने का कार्य करते हैं और ऐसे ऊतकों को संयोजी उत्तक कहा जाता है। इनका प्रमुख कार्य ही दो उत्तकों को आपस में जोड़ना तथा उन्हें संचालित करना होता है। 

(क) रुधिर ऊतक – रुधिर उत्तक दो प्रकार के होते है  लाल रुधिरकणिका तथा श्वेत रुधिरकणिका। इसमें  लाल रुधिरकणिका उत्तकों का कार्य शरीर में ऑक्सीजन का आदान प्रदान करना होता है तथा श्वेत रुधिरकणिका उत्तकों का कार्य रोगों से शरीर की रक्षा करना होता है। 

(ख) अस्थि ऊतक – चूना और फास्फोरस से पूरी तरह निवाली अस्थि कोशिकाओं के समूह से अस्थि उत्तक का निर्माण होता है जिसका प्रमुख कार्य शरीर को मजबूत बनाना होता है इस प्रकार के उत्तक हड्डियों  मजबूत बनाते है तथा इनकी गणना स्केलेरस ऊतक में की जाती है। 

(ग) लस ऊतक – लस कोशिकाओं के समूह से बनने वाले उत्तकों को लस उत्तक कहा जाता है लस उत्तकों से ही लसपर्व तथा टॉन्सिल आदि का निर्माण होता है इन उत्तकों को शरीर का रक्षक भी कहा जाता है। 

(घ) वसा ऊतक – वसा ऊतक दो प्रकार के होते हैं – एरिओलर तथा एडिपोस।

पेशी ऊतक (muscular tissues) – लम्बी कोशिकाओं का समूह होने के कारण इन्हे पेशी उत्तक कहा जाता है। इन उत्तकों में पेशियाँ लाल रंक की होती है। और यह सभी लाल पेशियाँ संकुचित होने की शक्ति रखती है। इनकी कार्यप्रणाली के अनुसार पेशीय उत्तक दो प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है – 

1) रेखांकित या ऐच्छिक पेशी ऊतक – शरीर के अंदर कुछ ऐसी पेशियां पाई जाती हैं जिन पर हमारा नियंत्रण होता है इनके संकुचन और शिथिलन पर हमारा नियंत्रण होता है इसलिए इन्हें ऐच्छिक पेशियां कहा जाता है तथा यह पेशियां रेखित पेशी उत्तक की बनी हुई होती है। 

इस प्रकार की पेशियाँ मुख्यता हमारे सिर, धड़ और कंकाल पेशियां, जीभ आदि में पाई जाती है यह एक प्रकार के जटिल बनावट वाले उत्तक होते हैं। हमारी इच्छा के अनुसार कार्य करने के कारण इन्हे ऐच्छिक पेशी ऊतक कहा जाता है। 

2) अनैच्छिक या अरेखांकित पेशी ऊतक – शरीर के अंदर पाई जाने वाली ऐसी पेशियाँ जो हमारी इच्छा अनुसार संकुचन और शिथिलन नहीं करती वह पेशियां अनैच्छिक पेशियों कहलाती है इस प्रकार की पेशियां प्रया: कोमल और आरेखितपेशीं उत्तकों की बनी होती है।

जो हमारे शरीर के भीतर के अंगों जैसे रक्त वाहिकाओं की दीवारों और त्वचा में पाई जाती है इस प्रकार की पेशियाँ व्यक्ति की इच्छा अनुसार संकुचित नहीं होती जैसे हृदय की पेशियां रेखित पेशी उत्तक की बनी रहने पर भी हमारी इच्छा अनुसार कार्य नहीं करती। 

जनन ऊतक – जिन कोशिकाओं का समूह शरीर का ढांचा बनाने का कार्य करता है उनको जनन ऊतक या स्केलेरस ऊतक कहा जाता है इसके अंतर्गत हमारी अस्थि तथा कार्टिलेज आते हैं तथा कार्टिलेज भी तीन प्रकार के होते हैं –

1) हाइलाइन,

2) फाइब्रो-कार्टिलेज, तथा

3) इलैस्टिक फाइब्रो – कार्टिलेज या पीत कार्टिलेज।

पादप ऊतक – पादपों के अंदर पाए जाने वाले उत्तकों को पादप उत्तक कहा जाता है पादपों का सूक्ष्म अवलोकन करने पर वैज्ञानिकों को यह पता चला है कि पौधों की वृद्धि किस प्रकार से होती है, 

और पादपों में भोजन का संग्रह किस प्रकार और कहां से और कैसे होता है तथा पादप के कौन से अंग बहुत मजबूत होते हैं और कौन से अंग बहुत नाजुक होते हैं तथा पादपों की शाखाएं तथा पत्ते कहां से निकलते है आदि। 

हुए इसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर विज्ञान ने ढूंढ लिया है तथा उन्हें इस बात का पता चला है कि पादपों में भी उत्तक पाए जाते हैं हालांकि ये उत्तक जंतुओं के ऊतकों से अलग होते हैं तथा इनके कार्य भी जंतु के उत्तकों से अलग होते हैं

पादप ऊतकों (Plant Tissue) को दो वर्गों में बाँटा जाता है

(1) विभाज्योतकी ऊतक ( meristematic tissue ) – विभाज्योतकी ऊतक के 3 प्रकार होते है जोकि निम्नलिखित है

(क) शीर्षस्थ विभाज्योतक ऊतक (Apical meristem)

(ख) पार्श्व विभाज्योतक ऊतक (lateral meristem)

(ग) अंतवृस्ति विभाज्योतक ऊतक (Intercalary meristem)

(2) स्थायी ऊतक ( permanent tissue ) – स्थाई ऊतक दो प्रकार के  होते है – 

(1) सरल ऊतक – सरल उत्तक तीन प्रकार के होते है –

(क) म्रदोत्क ऊतक (पैरेन्काइमा)

(ख) स्थूलोत्क ऊतक (कोलेंकाएम)

(ग) दरनोत्क ऊतक (स्कलेरेंकैमा)

(2) जटिल ऊतक – जटिल उत्तक दो प्रकार होते है – 

A) जाइलम (Xylem)

 जाइलम में चार घटक होते हैं –

1. जाइलम ट्रैकिड्स (वाहिनिका)

2. वाहिका

3. जाइलम पैरेनकाइमा

4. जाइलम फाइबर

B) फ्लोएम (Phloem)

फ्लोएम (Pholem) के चार घटक होते हैं-

1. चालनी नलिका

2. साथी कोशिकाएँ

3. फ्लोएम पैरेन्काइमा

4. फ्लोएम रेशे

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