जब किसी शब्द में लिंग, वचन, कारक, के प्रयोग से भी कोई परिवर्तन नहीं होता तो उन शब्दों को अव्यय कहा जाता है। अव्यय को अविकारी शब्द भी कहा जाता है।
साधारण शब्दों में इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं कि – अव्यय शब्द वह शब्द होते हैं जिनके द्वारा उनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के प्रयोग से भी कोई अन्य विचार उत्पन्न नहीं होता इस प्रकार के शब्द अपनी स्थिति में मूल रूप से बने रहते हैं।
अव्यय का रूपांतरण नहीं किया जा सकता इसलिए इन शब्दों को अविकारी शब्द कहा जाता है और इनका व्यय नहीं किया जा सकता इसलिए अव्यय कहलाते हैं।
जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अव्यय, अर्थात इत्यादि।
अव्यय के भेद (Avyay ke bhed)
(1) क्रिया विशेषण अव्यय (Adverb)
(2) संबंधबोधक अव्यय (Preposition)
(3) समुच्चयबोधक अव्यय (Conjunction)
(4) विस्मयादिबोधक अव्यय (Interjection)
(1) क्रिया विशेषण – जो शब्द किसी क्रिया या विशेषण या क्रियाविशेषण की विशेषता को दर्शाते हैं या उनका बोध करवाते हैं वह क्रिया विशेषण कहलाते हैं साधारण शब्दों में कहें तो जिन शब्दों के द्वारा क्रिया की विशेषता का पता चलता है वह शब्द क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण के लिए –
वह धीरे-धीरे खाना खा रहा है। वह वहां खाना खा रहा है। राम अभी खाना खा रहा है। इन वाक्यों में “धीरे-धीरे” “वहां” और “अभी” राम की क्रिया यानी उसके खाने की विशेषताएं हैं।
क्रियाविशेषण को अविकारी शब्द कहा जाता है। कई बार एक क्रियाविशेषण किसी दूसरे क्रियाविशेषण को भी उसकी विशेषता का बोध करवाता है।
जैसे – वह बहुत तेज चलता है, इस वाक्य में ‘बहुत’ क्रियाविशेषण का एक रूप है क्योंकि यह क्रिया विशेषण दूसरे क्रिया विशेषण ‘धीरे’ शब्द का बोध करवा रहा है। और यह दोनों क्रियाविशेषण एक दूसरे के पूरक है। अतः एक क्रियाविशेषण का दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता का बोध करवाना स्भाविक रूप से निश्चित है।
क्रिया विशेषण के प्रकार
(1) प्रयोग के अनुसार
(i) साधारण क्रियाविशेषण – जब किसी वाक्य में क्रियाविशेषण का प्रयोग स्वतंत्र तथा साधारण रूप से किया जाए तो उसे साधारण क्रियाविशेषण का नाम दिया जाता है।
इसमें क्रिया विशेषण को साधारण रूप प्रयोग में लाया जाता है जैसे – बेटा – वहां जाओ। अरे – वहां कौन गया।
इन वाक्यों में क्रियाविशेषण का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया गया है इसलिए यह साधारण क्रियाविशेषण का एक रूप है।
(ii) संयोजक क्रियाविशेषण – जब किसी वाक्य के उपवाक्य से क्रियाविशेषण का किसी प्रकार का संबंध रहे तो वह संयोजक क्रियाविशेषण कहलाता है। साधारण शब्दों में कहें तो उपवाक्य तथा क्रियाविशेषण का संबंध, संयोजक क्रियाविशेषण कहलाता है।
जैसे – जहां अभी रेगिस्तान है, वहां का भी समुंदर हुआ करता था। इसके उपवाक्य का संबंध क्रियाविशेषण से है इसलिए एक संयोजक क्रियाविशेषण है।
(iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण – जब किसी वाक्य में क्रियाविशेषण का प्रयोग अवधारण के रूप में किया जाता है तो वह अनुबद्ध क्रियाविशेषण कहलाता है। जैसे – मैंने उसे देखा तक नहीं।
इस वाक्य में क्रिया विशेषण का प्रयोग अवधारण के लिए और शब्दभेद के साथ किया गया है, इसलिए यह एक अनुबद्ध क्रियाविशेषण का एक रूप है।
(2) रूप के अनुसार
(i) मूल क्रियाविशेषण – जब किसी शब्द से क्रियाविशेषण मेल नहीं बनाते तो उन्हें मूल क्रियाविशेषण का नाम दिया जाता है। जैसे – ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, आदि यह शब्द क्रियाविशेषण के साथ मेंल नहीं बनाते इसलिए यह मूल क्रियाविशेषण का एक रूप है।
(ii) यौगिक क्रियाविशेषण – जब किसी शब्द में पद जोड़ने पर किसी क्रियाविशेषण का निर्माण हो तो वह यौगिक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे- मन से, जिससे, चुपके से, भूल से, देखते हुए, यहाँ तक, झट से, वहाँ पर।
यौगिक क्रियाविशेषण निमन्लिखित शब्दों के प्रयोग के मेल से बनते हैं-
(i) संज्ञाओं की द्विरुक्ति या नकल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ।
(ii) दो भित्र संज्ञाओं के मेल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश।
(iii) विशेषणों की द्विरुक्ति या नकल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ।
(iv) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति या नकल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ।
(v) दो क्रियाविशेषणों के मेल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आस-पास।
(vi) दो अलग या समान क्रियाविशेषणों के बीच ‘न’ शब्द का प्रयोग करने से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ, जैसे शब्दों का निर्माण होता है।
(vii) अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़ आदि शब्द बनते है।
(viii) संज्ञा और विशेषण के योग से- एक साथ, एक बार, दो बार, जैसे यौगिक क्रियाविशेषण का निर्माण होता है।
(ix) अव्य य और दूसरे शब्दों के मेल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म।
(x) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से बनने वाले यौगिक क्रियाविशेषण – विशेषकर, बहुतकर, मुख़्यकर, एक-एककर।
(iii) स्थानीय क्रियाविशेषण – जब कोई क्रियाविशेषण बिना किसी रूपांतरण के किसी स्थान विशेष में आ जाता है तो उसे स्थानीय क्रियाविशेषण कहा जाता है।
जैसे – वह अपना सिर खेलेगा। इस वाक्य में क्रिया विशेषण बिना किसी रूपांतरण के किसी विशेष स्थान में आ रहा है, इस वाक्य का अर्थ है कि, उसे खेलना नहीं आता।
(3) अर्थ के अनुसार
(i) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण – जिस शब्द के प्रयोग से किसी वाक्य में किसी प्रकार का प्रमाण प्रकट हो तो उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहा जाता है। जैसे – बहुत, थोड़ा, कम, अधिक, छोटा, आदि।
उदाहरण के लिए –
आप बहुत बोलते हैं।
आप थोड़ा खाते हैं।
आप कम बढ़ते हैं।
आप अधिक सोते हैं।
आप छोटा सोचते हैं।
उपरलिखित सभी वाक्य क्रिया का परिमाण प्रकट करते हैं इसलिए यह सब परिमाणवाचक क्रियाविशेषण के रूप हैं।
(ii) रीतिवाचक क्रियाविशेषण – जिन शब्दों के प्रयोग से क्रिया की रीति का पता चले वह रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे – वैसे, ऐसे, अचानक, आदि।
(2) संबंधबोधक अव्यय – जब किसी वाक्य में कोई शब्द संज्ञा और सर्वनाम के साथ आए और वाक्य के किसी दूसरे शब्द से उसके संबंध का बोध करवाए तो वे शब्द संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि।
साधारण शब्दों में कहें तो – जो अव्यय संज्ञा के बाद आए और उसी संज्ञा का संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द से दिखाएं उसे संबंधबोधक अव्यय कहते हैं। अगर इसमें संज्ञा ना हो तो यह अव्यय क्रियाविशेषण कहलाएगा।
उदाहरण के लिए –
तुम मुझसे बहुत ‘दूर’ बैठे हो
वह तुम्हारे ‘पास’ आ रहा है
तुम ‘अंदर’ क्यों नहीं आ रहे।
वह ‘बाहर’ ही क्यों खड़ा है।
उसे ‘पीछे’ के रास्ते ‘बाहर’ भेज दो
तुम्हारे ‘ऊपर. शनि चक्र मंडरा रहा है।
(3) समुच्चयबोधक अव्यय – जो शब्द दो शब्दों या वाक्यों को एक साथ मिलाते हैं उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहा जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो जब कोई अव्यय किसी क्रिया और संज्ञा की विशेषता ना बता कर किसी वाक्य का संबंध किसी दूसरे वाक्य से जोड़ता है, तो उसे समुच्चयबोधक अव्यय कहा जाता है।
उदाहरण के लिए – यद्यपि, क्योंकि, परंतु, किंतु, आदि शब्द।
(4) विस्मयादिबोधक अव्यय – जो शब्द किसी प्रकार के भाव को प्रकट करें उसे विस्मयादिबोधक अव्यय कहा जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो – जिन शब्दों के प्रयोग से हर्ष, शोक, आशीर्वाद, क्रोध, आदि भावों का बोध हो तो उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहा जाता है।