धातु की परिभाषा (Dhatu ki Paribhasha)
क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता है।जिन मूल अक्षरों से ‘क्रिया‘ का निर्माण होता है, वह मूल शब्द धातु कहलाते है।
क्रियापद का वह अंश जो क्रिया के प्राय: सभी रूपों में पाया जाता है, उसे धातु कहा जाता है। सधारण शब्दों में कहा जाये तो ‘जिन शब्दों से क्रिया बनती है, वह मूल अक्षर ही धातु कहलाते है। ‘
पढ़, आ, जा, पी, खा, लिख आदि।
उदाहरण –
1. अगर हम ‘खाना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘खा’ के साथ लगा है। इस प्रकार से खाना की मूल धातु ‘खा’ है।
2. इसी प्रकार से यदि हम ‘जाना’ क्रिया का उदाहरण लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु जोकि ‘जा’ है के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘जाना’ की मूल धातु ‘जा’ होगी।
3. इसी प्रकार से यदि हम ‘पढ़ना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘पढ़’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘पढ़ना’ की मूल धातु ‘पढ़’ है।
4. इसी प्रकार से यदि हम ‘आना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘आ’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘आना’ की मूल धातु ‘आ’ है।
5. अगर हम ‘देखना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘देख’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘देखना’ की मूल धातु ‘देख’ है।
6. इसी प्रकार से यदि हम ‘लिखना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘लिख’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘लिखना’ की मूल धातु ‘लिख’ है।
7. इसी प्रकार से यदि हम ‘पीना’ क्रिया का उदाहरण लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु जोकि ‘पी’ है उसके साथ लगा है। इस प्रकार से ‘पीना’ की मूल धातु ‘पी’ कहलाएगी।
8. अगर हम ‘रोकना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘रोक’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘रोकना’ शब्द की मूल धातु ‘रोक’ है।
9. इसी प्रकार से यदि हम ‘करना’ क्रिया का उदाहरण लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु जोकि ‘कर’ है के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘करना’ की मूल धातु ‘कर’ कहलाएगी।
10. अगर हम ‘लड़ना’ क्रिया को लें तो इसमें ‘न’ प्रत्यय है जोकि इसकी मूल धातु ‘लड़’ के साथ लगा है। इस प्रकार से ‘लड़ना’ शब्द की मूल धातु ‘लड़’ है।
उपयुक्त इन १10 उदाहरणों से अब आप समझ ही गए होंगे कि धातु और क्रिया के मध्य क्या संबंध है और किस प्रकार से धातु के साथ न प्रत्यय जुड़कर एक समान्य क्रिया का निर्माण कर रहा है। समान्य क्रिया को साधारण तरिके से निचे बताया गया है वह कैसे धातु और ना के साथ समान्य क्रिया का रूप लेती है।
सामान्यक्रिया – जब क्रिया के समान्य रूप यानि धातु के साथ ‘ना’ जोड़ दिया जाता है तो वह क्रिया का समान्य रूप बन जाता है। यदि धातु के साथ ‘ना’ को न जोड़ा जाए तो वह क्रिया का समान्य रूप नहीं रहता है।
जैसे –
1. पढ़ + ना = पढ़ना
2. आ + ना = आना
3. लिख + ना = लिखना
4. पी + ना = पीना
5. जा + ना = जाना
6. खा + ना = खाना
7. देख + ना = देखना
8. रोक + ना = रोकना
9. रो + ना = रोना
ऊपर दिए गए इन सभी उदाहरणों से यह बात सिद्ध होती है कि अगर धातु के साथ ना ‘प्रत्यय’ को जोड़ दिया जाये तो वह ‘समान्य क्रिया’ का रूप ले लेता है, लेकिन अगर समान्य क्रिया को अलग अलग करके लिखा जाये तो वह पुन: ‘धातु’ और ‘ना’ प्रत्यय का रूप ले लेती है जैसे –
- लिखना (समान्य क्रिया) = (समान्य क्रिया को अलग करने के बाद) लिख (धातु) + ना (प्रत्यय)
- रोकना (समान्य क्रिया) = (समान्य क्रिया को अलग करने के बाद) रोक (धातु) + ना (प्रत्यय)
- रोना (समान्य क्रिया) = (समान्य क्रिया को अलग करने के बाद) रो (धातु) + ना (प्रत्यय)
इस प्रकार से समान्य क्रिया को जब तोडा जाता है तो वह पूण: धातु और ना ‘प्रत्यय’ का रूप ले लेती है।
धातु के भेद (Dhatu ke bhed)
व्युत्पत्ति के आधार पर धातु पाँच प्रकार की होती है–
(1) मूलधातु
(2) यौगिकधातु
(3) नामधातु
(4) मिश्रधातु
(5) अनुकरणात्मकधातु
(1) मूलधातु (Mul Dhatu)
क्रिया के स्वतन्त्र रूप को मूल धातु कहा जाता है। मूल धातु किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं करती यह खुद ही एक शब्द का निर्माण करती है और अन्य किसी शब्द को इसके जोड़ा नहीं जाता है। जैसे – खा, ले, रोक, सो, कर आदि।
मूल धातु के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से है –
तुम इस फल को ‘खा’ लो।
तुम इस बकरी को यहाँ से ‘ले’ जाओ।
अब इसे ‘रोक’ कर कोई फायदा नहीं है।
उसे कह तो की ‘रोक’ सको तो ‘रोक’ लो।
तुम यह सब काम खुद क्यों नहीं ‘कर’ लेते।
अपर दिए गए इन सभी वाक्यों से यह बात स्पष्ट होती है कि मूल धातु हमेशा अपने मूल रूप में रहती है लेकिन उसके आगे किसी भी प्रत्यय का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
(2) यौगिक धातु (Yogik Dhatu)
जब धातु के साथ किसी प्रत्यय का योग किया जाता है तो उसे यौगिक धातु कहा जाता है। यौगिक धातुएं अनंत है जिसका प्रमुख कारण यह है इनमे कुछ एकाक्षरी, दो अक्षरी, तीन अक्षरी, तीन अक्षरी और चार अक्षरी धातुएँ होती हैं।
यौगिक धातु के कुछ उदहारण निम्नलिखित दिए गए है –
धातु + ना ‘प्रत्यय’ = यौगिक धातु।
पढ़ + ना = पढ़ना
आ + ना = आना
लिख + ना = लिखना
पी + ना = पीना
जा + ना = जाना
खा + ना = खाना
देख + ना = देखना
रोक + ना = रोकना
रो + ना = रोना।
इन सभी यौगिक धातुओं में हमने ना ‘प्रत्यय’ को जोड़ा है जिससे एक अलग धातु का निर्माण हुआ है जिसे यौगिक धातु कहा जाता है।
यौगिक धातुओं को तीन प्रकार से बनाया जा सकता है –
1. धातु में प्रत्यय लगाने से अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुओं का बनाना।
2. दो या दो से अधिक धातुओं को सयुंक्त करने से बनाई जाने वाली धातुएं।
3. संज्ञा या विशेषण से बनाई जाने वाली नामधातु।
(3) नामधातु (Nam Dhatu)
जिन धातुओं का निर्माण ‘संज्ञा और विशेषण’ से होता है, वह धातुएं “नामधातु” कहलाती है।
नाम धातु के उदाहरण निम्नलिखित है –
संज्ञा से – चक्कर – चककराना।
संज्ञा से – बात – बतियाना।
विशेषण से – शर्म – शर्माना।
विशेषण से – गरम – गरमाना।
उपरलिखित शब्दों से पता चलता है की ‘संज्ञा और विशेषण’ से नामधातु का निर्माण हो रहा है।
(4) मिश्रधातु –
जब कभी भी संज्ञा, विशेषण, और क्रिया विशेषण शब्दों के बाद ‘करना’ या ‘होना’ जैसे क्रिया पदों का प्रयोग करने से जो क्रिया धातुएँ बनती है वह मिश्र धातु कहलाती है।
मिश्र धातु के उदहारण निम्नलिखित है –
होना या करना – पढ़ाई करना, लड़ाई होना, लिखाई करना, दर्द होना आदि।
देना – किताब देना, सीख देना, उपदेश देना आदि।
मारना – गप्पे मारना, पत्थर मारना, आवाज मरना आदि।
लेना – समय लेना, पेन लेना, सो लेना आदि।
जाना – यहाँ जाना, वहां जाना, कब जाना आदि।
आना – किसी का याद आना, नजर आना, किसी को देख आना आदि।
(5) अनुकरणात्मक धातु
जब धातुओं के निर्माण ध्वनि के अनुकरण पर हो तो वह अनुकरणात्मक धातुएं कहलाती है। जैसे – बड़बड़ाना, चेह्चाना, खटखटाना आदि।
अनुकरणात्मक धातु के उदहारण –
उसका ‘बड़बड़ाना’ कभी बंद नहीं होता है।
पक्षिओं का ‘चेह्चाना’ मुझे बहुत पसंद है।
उन बच्चों का काम सिर्फ दूसरों के घरो के दरवाजो को ‘खटखटाना’ और भाग जाना है।
भीगी गेंद को फेंकने से पहले ‘पटकना’ जरूरी होता है।
ऊपर दिए गए सभी वाक्य ध्वनिओं के अनुकरण के अनुसार बनाये गए है इसलिए सभी ‘शब्द’ अनुकरणात्मक धातु के अच्छे उदाहरण है।