आज के इस लेख में हम आपको करुण रस के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, इस लेख में आप करुण रस की परिभाषा, करुण रस के अवयव के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
करुण रस की परिभाषा
किसी प्रिय वस्तु अथवा इष्ट वस्तु, व्यक्ति के दूर हो जाने या नस्ट हो जाने की जो अनुभूति होती है उसे शोक कहते हैं तथा यही शोक जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट हो जाता है तो वह करुण रस कहलाता है।
उदाहरण –
राम राम कही राम कहि राम राम कहि राम ।
तनु परिहरि रघुबर बिरह राउ गयऊ सुरधाम ।।
उपर्युक्त पंक्तियों में बताया गया है कि भगवान श्री राम के पिता दशरथ का निधन हो गया है जो कि राम राम की पुकार करते हुए स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।
यह दृश्य पाठको के ह्रदय को अंदर से दुखी कर रहा है। यहाँ पर दर्शक और पाठक दोनो के ह्रदय में करुण रस की उतपत्ति हो रही है तथा दोनो ही के आँखों से अश्रु निकल रहे हैं।
उदाहरण –
सीता गई तुम भी चले मै भी न जिऊंगा यहाँ।
सुग्रीव बोले साथ में सब जाएँगे वानर वहाँ।।
उपर्युक्त पंक्तियों में लक्ष्मण को शक्ति लगने के बाद श्री राम जी दुख के साथ कह रहे हैं कि पहले सीता चली गई, अब तुम भी चले। तुम दोनों के बिना मैं इस संसार में नहीं जी पाऊंगा। यह सुनते ही सुग्रीव कहते हैं कि जहां आप जाएंगे वहां हम सब बानर भी आपके साथ चलेंगे।
यह दृश्य पाठको के ह्रदय को अंदर से दुखी कर रहा है। यहाँ पर दर्शक और पाठक दोनो के ह्रदय में करुण रस की उतपत्ति हो रही है तथा दोनो ही के आँखों से अश्रु निकल रहे हैं।
करुण रस के अवयव
स्थाई भाव :- शोक
संचारी भाव :- गिलानी, मरण, स्नेह, निर्वेद, स्मृति, घृणा, उत्सुकता, उत्कर्ष, चिंता, चिंता, उन्माद, मोह, आशा-निराशा, आवेग इत्यादि।
अनुभाव :- छटपटाना, छाती पीटना, दुखी की सहायता करना, रंग उड़ना, मूर्छा, चित्कार करना, विलाप करना, रोना आदि, आंसू बहाना, स्वर भंग इत्यादि।
आलंबन विभाव :- प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होना, प्रिय वस्तु का नष्ट होना आदि।
उद्दीपन विभाव :- डाह क्रिया, मूर्चछित शरीर, रात का सुनसान समय।
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