उत्प्रेक्षा अलंकार, अर्थालंकार के अंतर्गत आता है, अलंकार का प्रयोग काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए किया जाता है। जिसका एक भाग शब्दालंकार तथा दूसरा भाग अर्थालंकार होता है जिसका एक भेड़ उत्प्रेक्षा अलंकार भी होता है। इस लेख में हम उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा तथा उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रकार के बारे में पढ़ेंगे।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर अलंकार में उपमान के उपस्थित न होने पर उपमेय को उपमान के रूप में मान लिया जाता है, अर्थात जहाँ पर अनुपस्थिति में भी उपस्थिति को मान लिया जाता है वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं।
उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात
मनौ नीलमणि सैल पर आतप परयो प्रभात। ।
उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रकार
- वस्तुप्रेक्षा अलंकार
- हेतुप्रेक्षा अलंकार
- फलोत्प्रेक्षा अलंकार
1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार
जब उत्प्रेक्षा अलंकार में प्रस्तुति में अप्रस्तुति कई संभावना को दिखाया जाता है तो वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण-
”सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।”
2. हेतुप्रेक्षा अलंकार
जब उत्प्रेक्षा अलंकार में अहेतु में हेतु की संभावना को दर्शाया जाता है अर्थात वास्तविक कारण को छोड़कर अन्य किसी कारण को प्रभाव दिया जाता है वहाँ पर हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।
3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार
जब उत्प्रेक्षा अलंकार में वास्तविक फल के न होने पर भी उस फल की कल्पना करके उसे ही फल मान लिया जाता है तो वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण –
खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको उत्प्रेक्षा अलंकार के बारे में उदाहरण सहित पूरी जानकारी दी है यदि आपको इस लेख में दी गई जानकारी पसन्द आयी हो तो इसे आगे जरूर शेयर करें।