हिन्दी विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है। इसमें हम जैसे बोलते हैं, बिलकुल वैसे ही लिखते भी हैं। प्रत्येक अक्षर के ध्वनि सदैव एकसमान रहती है। अतः इसमें गलतियों के होने की संभावना कम होनी चाहिए थी।
लेकिन कई विदेशी भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के हिन्दी में शामिल हो जाने के कारण आज हिन्दी भाषा में ही लोग ज़्यादातर गलतियाँ करते हैं। कई वर्षों से भारतीयों द्वारा अँग्रेजी को ज्यादा महत्व देने और हिन्दी को नजरअंदाज करना भी इसका एक मुख्य कारण है।
लेकिन हाल के कुछ वर्षों से लोगों का हिन्दी के प्रति रूझान बढ़ा है। भारत और हिन्दी का विश्व पटल पर फिर से महत्व बढ़ा है।
यदि आप हिन्दी भाषा सीखना चाहते हैं तो आपको इसके चार मुख्य राहों से होकर गुजरना होता है – सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना।
अतः यह आवश्यक है कि हम हिन्दी की अशुद्धियों को समझें और सही भाषा और लेखन का प्रयोग करें। इसके लिए हमें वर्तनी को भली-भांति समझना होगा, तो आइये शुरू करते हैं!
वर्तनी की परिभाषा: वर्तनी किसे कहते हैं?
भाषा के किसी शब्द को को लिखने में प्रयुक्त वर्णों के सही क्रम को वर्तनी (Spelling) कहते हैं। भाषा की समस्त ध्वनियोँ को सही तरीके से उच्चारण करने के लिए वर्तनी की एकरुपता स्थापित की जाती है। वर्तनी को अक्षरी या अँग्रेजी में ‘स्पेलिंग’ भी कहा जाता है।
जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओ के अक्षरों को सटीक ध्वनियों के साथ ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ होगी। अतः हम कह सकते हैं कि वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियोँ के उच्चारण से है।
शब्द-शुद्धिकरण क्या है?
वर्णों या अक्षरों के अलावा शब्द भाषा की मूलभूत इकाई है। अतः हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि उच्चारण या लेखन के समय हमारे शब्द सार्थक हो और उनमें मात्रों का सही प्रयोग हो। साधारण शब्दों में कहें तो शब्दों को शुद्व लिखने की विधि को ही शब्द शुद्धिकरण कहा जाता है। शब्द-शुद्धिकरण के लिए शब्द-रचना को समझना आवश्यक होता है। शब्द शुद्धिकरण से पहले वाक्य शुद्धिकरण का ज्ञान होना अति आवश्यक है जिसका वर्णन निम्नलिखित है –
वाक्य-शुद्धिकरण क्या है?
अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। वाक्यों में सार्थक शब्दों और विराम चिह्नों का सही प्रयोग ही वाक्य-शुद्धिकरण है। वाक्यों के शब्द या शब्दांश यथा-स्थान होने चाहिए और वाक्य-रचना व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होना चाहिए। साधारण शब्दों में कहा जाए तो वाक्य की शुद्धिकरण की प्रक्रिया को वाक्य शुद्धिकरण कहा जाता है। इसमें एक शब्द की जगह पूरे वाक्य को शुद्व किया जाता है।
हिन्दी मेँ अशुद्धियोँ के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं?
1. अक्षर व मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- हिन्दु – हिन्दू
- ईर्षा – ईर्ष्या
- जाइये – जाइए
- उपरोक्त – उपर्युक्त
- दुकान – दूकान
2. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ
हिन्दी में मनुष्यों के अलावा अन्य चीजों पर भी लिंग का प्रभाव पड़ता है। इसलिए हिन्दी मेँ लिँग सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः दिखाई देती हैँ। जैसे –
- आत्मा अमर होता (होती) है।
- दही बड़ी अच्छी (बड़ा अच्छा) जमी है।
3. समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- स्वामीभक्त – स्वामिभक्त
- नवरात्रा – नवरात्र
- निरपराधी – निरपराध
4. संधि सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- अत्याधिक – अत्यधिक
- सदेव – सदैव
- आर्शीवाद – आशीर्वाद
5. विशेष्य–विशेषण सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- पूज्यनीय व्यक्ति – पूजनीय व्यक्ति
- विद्वान् नारी – विदुषी नारी
- सुखमय शान्ति – सुखमयी शान्ति
6. प्रत्यय–उपसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- सौन्दर्यता – सौन्दर्य
- बेफिजूल – फिजूल
- इतिहासिक – ऐतिहासिक
7. वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ
आदरसूचक शब्दोँ और प्राण, आँसू जैसे कुछ शब्दों में सदैव बहुवचन का प्रयोग होता है।
- उसका प्राण संकट मेँ है। – उसके प्राण संकट में हैँ।
- वहाँ मुझे एक महापुरुष मिला था। – वहाँ मुखे एक महापुरुष मिले थे।
8. कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- मुझे अपने काम को करना है। – मुझे अपना काम करना है।
- पाँच बजने को पन्द्रह मिनट हैँ। – पाँच बजने मेँ पन्द्रह मिनट हैँ।
9. शब्द–क्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ
- सन् 465 मेँ तो खोज हुई थी इसकी। – इसकी खोज सन् 465 मेँ हुई थी।
- रतन टाटा जी की है ये कंपनी। – यह कंपनी रतन टाटा जी की है।
वर्तनी की अशुद्धियोँ के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं?
- हिन्दी लेखन के लिए आधुनिक तकनीक जैसे – हिन्दीसॉफ्टवेयर, हिन्दीकीबोर्ड इत्यादि का ठीक तरह से उपलब्ध न होना, वर्तनी की अशुद्धियोँ का एक प्रमुख कारण है।
- कालांतर में अनेकों विदेशीभाषाओं के शब्द हिन्दी में शामिल हो गए। जिससे विभिन्न लोगों ने अलग-अलग शब्दों को हिन्दी में अलग-अलग तरीके से लिखना शुरू कर दिया। जैसे – कम्पनी, कंपनी, कम्प्युटर, कम्प्यूटर, कंप्यूटर इत्यादि।
- कई क्षेत्रीयभाषाओंयाबोलियों में स–श, व–ब, न–ण इत्यादि वर्णोँ में अंतर नहीं किया जाता है। शब्दों के गलत उच्चारण से भी वर्तनी की अशुद्धियाँ होतीं हैं। जैसे, रामायन – रामायण, सीदा – सीधा इत्यादि।
- लोगों में अक्षररचनाकीजानकारी का अभाव है, इसलिए लोग कई शब्दों को गलत लिखते हैं। जैसे – आर्शीवाद – आशीर्वाद, पुर्नस्थापना – पुनर्स्थापना इत्यादि।
- विरामचिह्नोंकेगलतप्रयोग से वाक्य के अर्थ या भाव ही बदल जाते हैं। जैसे – क्यों, कष्ट हो रहा है? – क्यों कष्ट हो रहा है?
- लोगों या सरकार द्वारा आधुनिक या वर्तमान चीजों में अँग्रेजीकेअधिकप्रयोग के कारण, लोग सामान्य जीवन में हिन्दी का अधिक प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
- हिन्दी भाषा और इसके व्याकरण को अनदेखा करना या इसके महत्त्वकोकमआँकना भी एक कारण है।
शुध्द वर्तनी लेखन के क्या नियम होते हैं?
शुद्ध वर्तनी लिखने के लिए कई नियम होते हैं। उनमें से 6 प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं:
1. संस्कृत या तत्सम शब्दों से संबन्धित नियम
- संस्कृत भाषा के मूल शब्दों (तत्सम शब्दोँ) की वर्तनी मेँ संस्कृत वाले रूप को ही रखा जाना चाहिए।
- कुछ तत्सम शब्दोँ के नीचे हलन्त (् ) लगाने का प्रचलन हिन्दी मेँ समाप्त हो चुका है। अतः अब उनके नीचे हलन्त नहीं लगाया जाता है। जैसे– महान, जगत, विद्वान आदि।
- लेकिन वर्ण-विन्यास, संधि-विच्छेद या छन्द को समझाने के लिए आज भी हलन्त का प्रयोग किया जाता है।
- ऐसे संस्कृत शब्द जिनके आगे विसर्ग ( : ) लगता है, उनके हिन्दी लेखन में भी विसर्ग का प्रयोग उसी प्रकार होना चाहिए। जैसे – प्रातःकाल, दुःखद, प्रायः इत्यादि।
- यदि विसर्ग के बाद श, ष, या स आये तो या तो विसर्ग को या तो उसी प्रकार लिखा जाता है या उसके स्थान पर अगला वर्ण अपना रूप ग्रहण कर लेता है। जैसे – निः + सन्देह = निःसन्देह या निस्सन्देह ।
2. अनुनासिक चिह्नों से संबन्धित नियम
- ‘अ, ऊ, आ’ मात्रा वाले वर्णोँ के साथ अनुनासिक चिह्न को चन्द्रबिन्दु (ँ) के रूप मेँ लिखना चाहिए। जैसे – आँख, ढाँचा, ऊँट, काँच इत्यादि।
- ‘इ, ई, ए, ऐ’ मात्रा वाले वर्णोँ के साथ अनुनासिक चिह्न को अनुस्वार (ं) के रूप मेँ लिखना चाहिए। जैसे – सिँचाई, ईँट, खीँचना, नहीँ, मैँने इत्यादि।
- यदि वर्णमाला के व्यंजन वर्ग के पंचम अक्षर के बाद उसी वर्ग के प्रथम चारोँ वर्णोँ मेँ से कोई वर्ण हो तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग होना चाहिए। जैसे – कंकर, चंचल, ठंड, संपादक इत्यादि।
- लेकिन जब नासिक्य व्यंजन (वर्ग का पंचम वर्ण) उसी वर्ग के प्रथम चार वर्णोँ के अलावा अन्य किसी वर्ण के पहले आए तो उसके साथ उस पंचम वर्ण का अर्द्ध रूप लिखा जाता है। जैसे – सम्राट, अन्य, जन्म, गन्ना, सम्मान इत्यादि।
3. सर्वनाम शब्दों से संबन्धित नियम
- विभक्ति चिह्न, सर्वनाम शब्दों के साथ लिखे जाते हैं। जैसे – यह आपकी जीत है। यह आपने किया।
- विभक्ति चिह्न, सर्वनाम शब्दों के अलावा अन्य सभी शब्दों से अलग लिखे जाते हैं। जैसे – यह सुनिधिको दे दीजिये।
- सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न होने पर पहला विभक्ति चिह्न सर्वनाम मेँ मिला कर एवं दूसरा अलग लिखना चाहिए। जैसे – यह उपहार आपकेलिए है।
- यदि सर्वनाम शब्द और उसकी विभक्ति चिह्न के बीच ‘ही’, ‘तक’ इत्यादि जैसे शब्द होँ तो विभक्ति सर्वनाम से अलग लिखी जाती है। जैसे– यह उपहार आपहीकेलिए है।
4. क्रिया पदों से संबन्धित नियम
- संयुक्त क्रिया पदों मेँ सभी अंगभूत क्रियाओँ को अलग–अलग लिखना चाहिए। जैसे – वह प्रतिदिन अभ्यास कियाकरताहै।
- कई लोग पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ को क्रिया से मिलाकर लिखते हैं। हालाँकि कई लोग इन्हें अलग करके भी लिखते हैं। जैसे – मैं जागकर सपने देखता हूँ।
5. व्याकरण के अन्य अव्ययोँ से संबन्धित नियम
- द्वन्द्व समास के पदोँ के बीच योजन चिह्न (–) हाइफन लगाना चाहिए। जैसे – माता–पिता, रात–दिन इत्यादि।
- तक, साथ जैसे अव्ययोँ को अलग लिखना चाहिए। जैसे – अब यहाँतक आए हो तो मेरेसाथ ही वापस जाना।
- ‘जैसा’, ‘सा’ जैसे समानता दर्शाने वाले शब्दांशों के बीच योजक चिह्न (–) का प्रयोग करना चाहिए। जैसे – अपना-सा, प्यारा-सा, पुत्र-जैसा इत्यादि।
6. अँग्रेजी के आगत शब्दों से संबन्धित नियम
अँग्रेजी से हिन्दी मेँ आये जिन शब्दोँ मेँ आधे ‘ओ’ (आ एवं ओ के बीच की ध्वनि ‘ऑ’) की ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके ऊपर अर्द्ध चन्द्रबिन्दु लगानी चाहिए, जैसे– बॉल, कॉलेज, डॉक्टर, कॉफी, हॉल, हॉस्पिटल आदि।
हिन्दी में वर्तनी की संक्षिप्त विवेचना
दुनिया भर के लगभग सभी देश अधिकांशतः अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते हैं। भारतीयों को भी अन्य देशों से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हुए, उसे प्रयोग करना चाहिए। मातृभाषा का सही प्रयोग करने के लिए आपको वर्तनी पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।