व्याकरण की परिभाषा (Vyakaran ki Paribhasha)
संसार की किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसके व्याकरण का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है।
एक ऐसी विद्या जिसके द्वारा हम किसी भी भाषा को शुद्ध बोलना तथा लिखना एवं समझना सीखते हैं हर भाषा के अपने-अपने नियम होते हैं जैसे हिंदी भाषा में भी कुछ नियम है।
यह सब नियम हिंदी भाषा के व्याकरण के अंदर आएंगे, साधारण शब्दों में कहा जाए तो भाषा को शुद्ध बोलने तथा लिखने की प्रक्रिया को व्याकरण कहा जाता है।
हर भाषा कि रचना में सीमित नियम पाए जाते हैं लेकिन हर भाषा की अभिव्यक्ति असीमित होती है। भाषा का एक-एक नियम अनगिनित अभ्व्यक्तियों को नियंत्रण में करता है, भाषा के इन नियमों का जिस शास्त्र के अधीन अध्ययन किया जाए उस शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।
व्याकरण किसी भी भाषा के नियमों का विश्लेषण करता है, और उसके नियमों को बनाए रखता है व्याकरण के नियम ही भाषा को शुद्ध बनाते हैं, परन्तु व्याकरण के द्वारा किसी भी भाषा के नियम नहीं बनाए जाते बल्कि भाषा को बोलने वाले लोग उस भाषा के व्याकरण के नियम बनाते हैं।
इसे हमें ऐसे भी कह सकते हैं कि
‘भाषा का शुद्ध मानक रूप निर्धारित करने वाले शास्त्र को व्याकरण कहा जाता है।’
व्याकरण के अंग (Vyakaran ke ang)
किसी भी भाषा का व्याकरण हमें उसके तीन अंगों का बोध करवाता है ध्वनि, शब्द, और वाक्य, व्याकरण में इन तीनों अंगों का अध्ययन निम्नलिखित तौर पर किया जाता है।
1. ध्वनि – व्याकरण के नियम यह निश्चित करते हैं कि जब भाषा को बोला जाएगा तो शब्दों की ध्वनि किस प्रकार होगी
जैसे – निकेश और नीकेश – इन दोनों शब्दों की ध्वनि का प्रवाह अलग-अलग है, हिंदी भाषा के क्याकरण के नियम इन दोनों शब्दों की ध्वनि निश्चित करेंगे।
इसी प्रकार से ही अन्य भाषा के व्याकरण के नियम होते है, हालाँकि हर भाषा के अलग-अलग व्याकरण नियम होते है।
2. शब्द – किसी भाषा के शब्द किस प्रकार से लिखे जाएंगे और, किस प्रकार से पढ़े जाएंगे यह दोनों तथ्य उस भाषा के व्याकरण के द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
जैसे – हिंदी भाषा में “महाद्वीप” शब्द को किस प्रकार से लिखा जाएगा और किस प्रकार से पढ़ा जाएगा, यह हिंदी भाषा का व्याकरण निर्धारित करेगा।
3. वाक्य – जब किसी भाषा में किसी वाक्य को लिखा जाता है तो उसके कुछ नियम होते हैं जैसे कहां पर प्रश्नचिन्ह लगेगा कहां पर कोमा लगेगा या कहां पर कौन सा चिन्ह लगेगा यह सब नियम उस भाषा के व्याकरण में बताए जाते हैं।
जैसे – हिंदी भाषा में वाक्य का अंत होने पर । (सीधी खड़ी रेखा) का उपयोग किया जाता है, जबकि अंग्रेजी भाषा में वाक्य खत्म होने पर . (डॉट) लगाया जाता है, हर भाषा में यह नियम अलग अलग प्रकार से पाया जाता है।
व्याकरण के प्रकार (Vyakaran ke prakar)
लगभग हर भाषा के व्याकरण के तीन प्रकार होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं –
(1) वर्ण या अक्षर
(2) शब्द
(3)वाक्य
(1) वर्ण या अक्षर -किसी भी भाषा में वर्ण उस मूल ध्वनि को कहा जाता हैं जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते जैसे हिंदी भाषा में अ, व, च, त, ट, प, ल, आदि भाषा की सबसे छोटी इकाइयां है जिनके टुकड़े नहीं किए जा सकते
नीचे कुछ ध्वनियों के उदाहरण है
काम
नाम
काम और नाम दोनों शब्दों में चार – चार मूल ध्वनियाँ है जिनके खंड नहीं किये जा सकते इनको पहचानने के निम्नलिखित तरीका है –
क + आ + म + अ = काम
न + आ + म + अ = नाम
व्याकरण के नियमों के अनुसार ही वर्णों को लिखा, पढ़ा और समझा, जाता है हर भाषा में वर्णों के मिलने से ही शब्द बनते है।
(2) शब्द – जब दो या दो से अधिक वर्ण समूह में मिलते हैं, तो उनके मिलने से ‘शब्द’ का निर्माण होता है, और उस शब्द का कोई ना कोई अर्थ अवश्य होता है। इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं कि जब वर्णों और ध्वनियों का सार्थक मेल हो तो शब्द का निर्माण होता है।
शब्दों के निर्माण के लिए भी हर भाषा के व्याकरण में अलग – अलग नियम बनाए गएँ हैं जैसे हिंदी भाषा में जब 2 या उससे अधिक वर्ण एक साथ मिलते हैं तो एक शब्द का निर्माण होता है व्याकरण के नियमों के अनुसार ही उस शब्द को पढ़ा लिखा और उसमें मात्राओं का उपयोग किया जाएगा
जैसे – रोना, बोलना, सुनना, आदि।
(3)वाक्य – जब एक शब्द समूह मिलकर किसी बात का अर्थ समझाते हैं, तो उसे वाक्य कहते हैं।
साधारण शब्दों में कहें तो – सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो “वाक्य” कहलाता है। हर वाक्य के उद्देश्य और विधेय होते हैं।
जैसे – राजेश टीवी देख रहा है, लड़के नाच रहे हैं।
वाक्य को किस प्रकार से लिखा जाएगा और किस प्रकार से पढ़ा जाएगा यह सब नियम उस भाषा के व्याकरण में बनाए जाते हैं।
जैसे – हिंदी भाषा को बाईं तरफ से पढ़ा जाता है जबकि उर्दू भाषा को दाएं तरफ से पढ़ा जाता है।
हिंदी व्याकरण की विशेषताएं –
हिंदी भाषा को भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत का एक अंग माना जाता है लेकिन हिंदी व्याकरण भी अपनी कुछ स्वतंत्र विशेषताएं रखता है, हालांकि हिंदी व्याकरण में संस्कृत व्याकरण की काफी छाप छोड़ी गई है, लेकिन फिर भी हिंदी व्याकरण की अपनी कुछ विशेषताएं हैं।
ध्वनि और लिपि
संसार की प्रत्येक सजीव तथा निर्जीव वस्तु में ध्वनि पाई जाती है, जैसे – समुद्र और नदी एक निर्जीव वस्तु है लेकिन इन दोनों से भी ध्वनि आती है, और कुत्ता, गाय, बिल्ली, आदि यह सब सजीव वस्तुएं है, और इन सभी से भी अलग-अलग प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न होती है।
परंतु व्याकरण में मनुष्य के मुंह से निकली या उच्चारित की गई ध्वनियों पर ही विचार किया जाता है। मनुष्य द्वारा निकाली जाने वाली ध्वनियों को चार भागों में बांटा गया है जोकि निम्नलिखित है –
(1) मनुष्य के क्रियावेश से निकलने वाली धनिया, जैसे – चलने की ध्वनि
(2) मनुष्य की अनिश्चित क्रियाओं से उत्पन्न होने वाली ध्वनि, जैसे – खर्राटे लेना या जँभाई मारना
(3) मनुष्य के स्वाभाविक कार्यों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि, जैसे – कराहना आदि
(4) चौथी ध्वनियां वे ध्वनियां है जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार अपने मुंह से उच्चारित करता है जिसे हम वाणी या आवाज भी कहते हैं।
पहेली तीन प्रकार की ध्वनियाँ निरर्थक मानी जाती है जबकि चौथे प्रकार की ध्वनि को भाषा या शैली कहा जाता है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी इच्छा, अवधारणाओं तथा अनुभवों को दूसरों के साथ व्यक्त करता है, किसी भी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा शब्दों से बनती है और शब्द ध्वनियों के सहयोग से बनते हैं।
आरंभ से या प्राचीन काल से ही किसी भी भाषा को लिखने के लिए लिपियों का उपयोग किया जाता है, जैसे – हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है, और हिंदी भाषा के अपने लिपि -चिन्ह है