शांत रस, रस के सबसे महत्वपूर्ण भेदों में से एक है इसलिए इस आर्टिकल में हम आपको शांत रस के बारे मे जानकारी देने जा रहे हैं, आप इस आर्टिकल में शांत रस की परिभाषा और शांत रस के अवयव के बारे में उदाहरण के साथ पढ़ने जा रहे हैं इसलिए आर्टिकल के अंत तक पूरा जरूर पढ़ें।
शांत रस की परिभाषा
काव्य रचना का वह भाग जिसको सुनकर ह्रदय में जो निर्वेद का भाव उत्पन्न है तो उस भाव को शांत रस कहते हैं।
साधारण शब्दों में कहे तो जब मनुष्य सांसारिक कार्यों से मुक्त होकर मोह माया का त्याग कर देता है। तथा बैराग्य धारण करके प्रभु के वास्तविक रूप का ज्ञान प्राप्त करते समय ह्रदय में जो शांति का भाव उत्पन्न होता है उसको शांत रस कहते हैं।
उदाहरण –
1. ओ क्षणभंगुर भव राम राम।
व्याख्या
उपर्युक्त पंक्ति सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध बनने के पहलेकी है। शांति स्थापित करने तथा विश्व कल्याण के लिए उन्होने सुख, समृद्धि, परिवार, वैभव, राज पाट इत्यादि सभी का त्याग कर दिया। इन्होने इन सब चीजों के साथ जीवन को क्षणभंगुर माना है।
2. जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं,
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।
व्याख्या
उपर्युक्त पंक्तियाँ में कवि के द्वारा कहा गया है कि जब मैं था तब है नही अर्थात जब मेरे अंदर अहंकार था तब मैं ईश्वर से बहुत दूर था तथा अब ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करते है मेरे अंदर से संपूर्ण अहंकार गायब हो गया है। तथा ज्ञानरूपी दीपक से मेरे अंदर का पूरा अहंकार रूपी अंधियारा समाप्त हो गया है।
शांत रस के अवयव
शांत रस का स्थाई भाव :- निर्वेद
संचारी भाव :- हर्ष, धृति, स्मृति, विबोध, मति, निर्वेद आदि।
अनुभाव :-
- पुलक
- पूरे शरीर में रोमांच
- अश्रू आदि।
उद्दीपन विभाव –
- सतसंग
- तीर्थ स्थल की यात्राए
- शास्त्रों का अनुशीलन इत्यादि।
आलंबन विभाव :- संसार की क्षणभंगुरत परमात्मा चिंतन एंव
इस आर्टिकल में हमने आपको शांत रस के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी है, आशा करता हूँ कि यह आपको पसंद आई होगी, यदि यह लेख आपको पसंद आता है तो इसे आगे शेयर जरूर करें।