आज के इस लेख में हम काव्यशास्त्र के बारे में पड़ने वाले हैं, यदि आपको काव्यशास्त्र के बारे में जानकारी नही है तो आप इस लेख को अंत तक पड़े आपको इसमे काव्यशास्त्र की परिभाषा, प्रकार, तत्व, गुण और काव्य शास्त्र के दोष के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जायेगी।
काव्यशास्त्र की परिभाषा
काव्य के जिस विज्ञान से काव्य एवं साहित्य के दर्शन होते हैं, उस विज्ञान को काव्य शास्त्र कहते हैं।काव्य शास्त्र के पूर्व नाम साहित्य काव्य एवं अलंकार काव्य हैं।
साधारण शब्दो मे कहे तो काव्य शास्त्र, साहित्य और काव्य का दर्शन एवं विज्ञान है।
यदि आप काव्य शास्त्र को अच्छी तरह से समझना चाहते हैं तो आपको काव्य शास्त्र के प्रमुख विन्दुओं को भी समझना होगा।
काव्य शास्त्र के प्रमुख पांच विंदु निम्नलिखित हैं-
- 1. काव्य की परिभाषा
- 2. काव्य के भेद अथवा प्रकार
- 3. काव्य के गुण
- 4. काव्य की शब्द शक्ति
- 5. काव्य के अंग
काव्य के प्रकार
काव्य को दो प्रकार से बांटा गया है।
- स्वरूप के आधार पर काव्य के भेद
- शैली के आधार पर काव्य के भेद
1. स्वरूप के आधार पर काव्य के भेद
स्वरूप के आधार पर भी काव्य को दो प्रकार से बांटा गया है।
- श्रव्य काव्य
- दृश्य काव्य
1. श्रव्य काव्य
जिस काव्यों को पढ़कर अथवा सुनकर काव्य का रसास्वादन अथवा आनन्द की अनुभूति होती है उन काव्यों को श्रव्य काव्य कहते हैं।
उदाहरण –
रामायण, सत्यवादी हरिश्चन्द्र, महाभारत इत्यादि।
2. दृश्य काव्य
जिस काव्य को पढ़कर अथवा सुनकर आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है वह दृश्य काव्य कहलाता है।
उदाहरण –
कामायनी, रामचरित मानस, नाटक, चलचित्र इत्यादि।
शैली के आधार पर काव्य के भेद
शैली के आधार पर काव्य को तीन भागों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं –
- पद्य काव्य
- गद्य काव्य
- चंपू काव्य
1. पद्य काव्य
जब भी किसी कथा का वर्णन काव्य के रूप में किया जाता है तथा अलंकार, रस और छंद का समावेश हो तो वह पद्य काव्य कहलाता है।
जैसे -: गीतांजलि।
2. गद्य काव्य
जब किसी कथा या कहानी का वर्णन गद्य के रूप में किया जाता है तो वह गद्य काव्य कहलाता है।
जैसे -: कामायनी, रामचरित मानस इत्यादि।
3. चंपू काव्य
जब किसी कथा अथवा कहानी के वर्णन में गद्य एव पद्य दोनो का प्रयोग किया जाता है तो वह काव्य चंपू काव्य कहलाता है।
जैसे – मैथिली शरण गुप्त द्वारा लिखित यशोधरा।
काव्य के तत्व
भारतीय काव्य शास्त्रियों के अनुसार काव्य के चार तत्व माने जाते है जो कि निम्नलिखित है-
- भावतत्व
- बुद्धि तत्व
- कल्पना तत्व
- शैली तत्व
1. भावतत्व
भारतीय आचार्यों के अनुसार विना भाव तत्व के साहित्य पूरी तरह से निर्जीव व निष्प्राण होता है। इनके अनुसार भाव तत्व को काव्य की आत्मा के रूप में माना जाता है।
2. बुद्धि तत्व
यह तत्व काव्य में भाव तथा कल्पना का सयोजन करता है, इसको विचार तत्व भी कहते हैं। बुद्धि तत्व का प्रयोग विशेष उद्देश्य के वाक्यो को पूरा करने के लिए किया जाता है।
3. कल्पना तत्व
कल्पना तत्व का अर्थ होता है एक ऐसा काव्य शास्त्र जो मन मे कुछ भी धारण करना। तथा इसी कल्पना शक्ति के द्वारा कवि अपने विचारों को पाठको के सामने साक्षात रूप में लाकर रख देता है।
4. शैली तत्व
शैली तत्व सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है। भाव, अनुभूति एवं कल्पना पूरी तरगलः से सही क्यो न हो यदि वाक्य की शैली के बिना तो यह सभी अधूरे हैं।
काव्य के गुण
जो धर्म काव्य की शोभा बढ़ाते हैं वह काव्य के गुण कहलाते है। काव्य में प्रसाद, माधुर्य, ओज इत्यादि गुण पाये जाते हैं।
काव्य के गुणों का वर्गीकरण
1. प्रसाद गुण
जिस किसी वाक्य में इतने साधारण तथा आसान शब्दो का प्रयोग किया जाता है जिसको कोई साधारण व्यक्ति बड़ी आसानी से समझ सके। तो उसमें प्रसाद गुण कहा जाता है।
2. ओज गुण
जिस किसी काव्य को पढ़ने अथवा सुनने से हमारे मन मे वीरता, जोस, भय, क्रोध इत्यादि के भाग प्रकट अथवा उत्पन्न होते है। तो उस वाक्य में ओज गुण का प्रयोग होता है। भयानक, वीर, विभत्स आदि रचनाओ का प्रयोग भी यूज गुण के अंतर्गत होता है।
3. माधुर्य गुण
जिस किसी काव्य को पढ़ने अथवा सुनने के बाद हमारे मन मे हास्य अथवा करुणा का भाव प्रकट अथवा उत्पन्न होता है तो उस वाक्य में माधुर्य गुण प्राप्त होता है।
काव्य के दोष
जब किसी काव्य में किसी भी तरह की कोई कमी या त्रुटि रह जाति है तो वह काव्य दोष कहलाता है।
प्रमुख काव्य दोषों का वर्णन
1. श्रुति कटुत्व दोष
जब भी किसी काव्य में इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो कि सुनने में बहुत कठोर प्रतीत होते हैं तो वह पर श्रुति कटुत्व दोष माना जाता है।
जैसे -: पावन पद वदन करके प्रभु कब कात्यार्थ मिले मुझसे।
2. ग्राम्यत्व दोष
जब किसी काव्य में कवि साहित्यिक शब्दो का प्रयोग ना करके ग्रामीण व सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करता है तो वहा पर ग्राम्यत्व दोष होता है।
जैसे -: मूड पर मुकुट धरै सोहत है गोपाल।
3. क्लिष्टत्व दोष
जब किसी काव्य में इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिन शब्दों का अर्थ समझना लोंगो के लिये बहुत मुश्किल होता है तो वहाँ पर क्लिष्टत्व दोष होता है।
4. दुष्कर्मत्व दोष
जिस किसी काव्य में प्रकट की जाने वाली बातें सही क्रम के अनुसार प्रस्तुत न कि गयी हो तो वहाँ पर दुष्कर्मत्व दोष होता है।
जैसे -: नृप मो कह हय दीजिए अथवा मत गजेंद्र
5. अक्रमत्व दोष
जिस किसी काव्य में शब्दों को सही क्रम में ना रखकर गलत क्रम में रखा जाता है तो वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
6. अप्रतीतत्व दोष
जिस काव्य में किसी शब्द का प्रयोग लोक प्रसिद्धि के विपरीत अर्थ में किया जाए तो वहाँ पर अप्रतीतत्व दोष होता है।