पिछले लेख ‘वर्ण’ में हमने जाना था कि ‘वर्ण और वर्णमाला’ क्या है। इसमें हमने वर्ण के दो प्रकारों ‘स्वर और व्यंजन’ की चर्चा की थी। इस लेख में हम वर्ण के पहले प्रकार ‘स्वर’ के बारे में पूरे विस्तार से जानेंगे। आइये शुरू करते हैं!
स्वर की परिभाषा: स्वर किसे कहते हैं?
हिन्दी व्याकरण में स्वर उन अखंड ध्वनियों को कहा जाता है, जिनके उच्चारण के लिए अन्य किसी वर्ण की जरूरत नहीं पड़ती है। सरल भाषा में कहें तो, स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण ही स्वर कहलाते हैं।
स्वर के उच्चारण के लिए अधिकांशतः, कण्ठ और तालु का प्रयोग किया जाता है। इनके उच्चारण में ओष्ठ और जिह्वा पर लगभग नगण्य प्रभाव पड़ता है।
इनसाइक्लोपीडिआ के अनुसार स्वर की परिभाष कुछ इस प्रकार है – स्वर एक विशेष प्रकार की वाक् ध्वनि है जो ऊपरी मुखर पथ या जीभ के ऊपर मुंह के क्षेत्र के आकार को बदलकर बनाई जाती है।
स्वर वर्णों की संख्या वास्तव में कितनी है?
भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिंदी वर्णमाला में स्वर की संख्या 11 और व्यंजन की संख्या 35 निर्धारित की गयी है। हालांकि, पारंपरिक हिंदी वर्णमाला में 13 स्वर और 33 व्यंजन हुआ करते थे।
पुराने हिन्दी व्याकरण के किताबों में भी आपको पारंपरिक का ही उल्लेख मिलेगा। लेकिन वर्तमान समय या आधुनिक हिन्दी व्याकरण के अनुसार, मानक हिन्दी वाली संख्या – 11 और 33 सही है।
वर्तमान में हिन्दी भाषा में मूल रूप से 11 स्वर होते हैं – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ । अन्य कुछ वर्णों के वर्गीकरण को लेकर कई लोग थोड़े असमंजस में रहते हैं और कुछ लोगों में मतभेद भी है।
- ‘अं’ और ‘अः’ – ये पारंपरिक हिन्दी में स्वर हैं लेकिन मानक हिन्दी में ये व्यंजन हैं।
- ‘ऋ’ को अर्धस्वर (आधा स्वर) माना जाता है।
- ‘ऋ’ और ‘ऌ’ का प्रयोग अधिकांशतः संस्कृत में होता है।
- ‘ऍ’ और ‘ऑ’ की ध्वनियाँ अँग्रेजी के कुछ आगत शब्दों के लिए की जाती है।
स्वर के कितने प्रकार (भेद) होते हैं?
मौलिक रूप से स्वर के दो प्रकार होते हैं: मूल स्वर और संयुक्त स्वर। इन दो मौलिक प्रकारों में से पहले प्रकार ‘मूल स्वर’ के 3 प्रकार होते हैं। लेकिन कई अन्य व्याकरण या ब्लॉग, इन 2 मुख्य प्रकारों के बजाय सीधे अगले 3 उप-प्रकारों की व्याख्या कर देते हैं।
सही और संक्षिप्त जानकारी के लिए आप नीचे के तालिका को पढ़ सकते हैं!
- मूल स्वर वर्ण किसे कहते हैं?
मौलिक रूप के या स्वतंत्र अस्तित्व वाले स्वर वर्ण, मूल स्वर वर्ण कहलाते हैं। इनके उच्चारण के लिए किसी व्यंजन वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कुछ मूल स्वरों में अन्य स्वर वर्ण भी जुड़े होते हैं।
मूल स्वर वर्ण के 3 प्रकार होते हैं। हालांकि कई लोग केवल पहले के दो प्रकारों को ही जानते हैं। लेकिन हम इसके तीनों प्रकारों को देखेंगे:
- ह्रस्व स्वर क्या होते हैं?
ऐसे स्वर वर्ण जिनके उच्चारण में काफी कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर वर्ण कहा जाता है। इनका वर्ण-विच्छेद नहीं किया जा सकता है, इसलिए इन्हें एकमात्रिक भी कहते हैं।
इनकी कुल संख्या केवल चार हैं – अ, आ, उ, ऋ ।
- दीर्घ स्वर क्या होते हैं?
ऐसे स्वर वर्ण जिनके उच्चारण में अधिक समय या ह्रस्व स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर वर्ण कहा जाता है।इन्हें द्विमात्रिक भी कहते हैं।
इनकी कुल संख्या सात है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
दीर्घ स्वर दो समान या भिन्न स्वरों के मेल से बनता है। इस संयोजन को आप दीर्घ स्वर वर्णों के वर्ण-विन्यास से समझ सकते हैं:
- आ = अ + अ
- ई = इ + इ
- ऊ = उ + उ
- ए = अ + इ
- ऐ = अ + ए
- ओ = अ + उ
- औ = अ + ओ
ग) प्लुत स्वर स्वर क्या होते हैं?
प्लुत स्वर वर्णों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय (ह्रस्व स्वर की तुलना में 3 गुना समय) लगता है, उन्हें प्लुत स्वर वर्ण कहा जाता है। इन्हें त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
इस स्वर का प्रयोग किसी को पुकारने, गाने, कोई भाव व्यक्त करने या किसी वक्तव्य को गहन भाव में कहने के लिए किया जाता है।
वैसे तो इस प्रकार के स्वर के लिए कोई निश्चित मात्रा नहीं है, लेकिन अधिकांशतः ‘S’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इस चिह्न को संस्कृत भाषा से लिया गया है।
जैसे –
- मोहनाSS, सा-रे-गाSSS, ओऽम्।
कुछ पुराने हिन्दी किताबों में इस चिह्न के स्थान पर हिन्दी के अंक ‘३’ का प्रयोग देखने को मिलता है। जैसे – ओ३म् इत्यादि।
- संयुक्त स्वर वर्ण किसे कहते हैं?
दो भिन्न स्वर वर्णों के मेल से एक संयुक्त स्वर का निर्माण होता है। ऐसे योग से निर्मित वर्ण को संयुक्त स्वर कहा जाता है। इनके उच्चारण में सामान्य से अधिक बल लगता है।
इसके वर्ण-विन्यास से पता चलता है कि इसके पहले भाग में एक ह्रस्व स्वर और दूसरे भाग में एक दीर्घ स्वर होता है। संयुक्त की स्वरों की संख्या केवल दो है, जिन्हें दीर्घ स्वर में भी शामिल किया जाता है।
- ऐ = अ +ए
- औ = अ +ओ
उच्चारण की दृष्टि से स्वर का कितने रूपों में वर्गीकरण किया जाता है?
स्वरों को उच्चारण के समय मुख के विभिन्न भागों पर पड़ने वाले प्रभावों के आधार पर कई तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है :
मात्रा की दृष्टि से स्वर का वर्गीकरण 3 प्रकारों से किया जाता है, जिन्हें हमने अभी मूल स्वर के 3 प्रकारों के रूप में भी पढ़ा है।
- ह्रस्व
- दीर्घ
- प्लुत
जिह्वा का कौन सा हिस्सा उठा हुआ है, इस आधार पर स्वर के 3 रूपों की विवेचना होती है:
- अग्रस्वर (Front Vowel)
- मध्यस्वर (Mid Vowel)
- पश्वस्वर (Back Vowel)
जिह्वा की ऊँचाई की दृष्टि सेस्वर को 5 भागों में वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण इस आधार पर किया जाता है कि बोलते समय हमारी जीभ कितनी ऊपर या कितनी नीचे है और हमारा मुँह कितना खुला है।
- विवृत (खुला हुआ, यानि कि जीभ नीचे गिरी हुई है)
- अर्धविवृत (आधा खुला हुआ)
- मध्य का
- अर्धसंवृत (आधा बंद)
- संवृत (अत्यन्त संकीर्ण, यानि कि जीभ मुँह की तालु तक उठी हुई है)।
होंठों की स्थिति के अनुसार स्वर का 3 भागों में वर्गीकरण होता है:
- प्रसृत (खुले होंठ)
- वर्तुल (गोलाकार होंठ)
- अर्ध-वर्तुल (आधे गोलाकार होंठ)
वर्गीकरण के इतने आधारों में से केवल पहले 2 आधार ही महत्वपूर्ण हैं:
- मात्रा की दृष्टि से स्वर का वर्गीकरण
- जिह्वा के उठे हुए भाग के आधार पर स्वर का वर्गीकरण ।
स्वर का हिन्दी व्याकरण में स्थान व महत्व
हिन्दी स्वरों की तुलना यदि आप अँग्रेजी भाषा के Vowel से करें तो उनकी संख्या केवल 5 हैं – A, E, I, O, U और उनके अधिकांश शब्द Vowel से युक्त होते हैं। लेकिन हिन्दी में शब्द केवल स्वर पर आश्रित नहीं होते हैं।
हिन्दी भाषा में कुल 11 स्वर होते हैं, जिनका भाषा में महत्वपूर्ण स्थान हैं। शब्दों के निर्माण में स्वर का विशेष योगदान होता है। हालांकि सभी शब्दों में पूर्ण स्वर देखने को नहीं मिलते हैं, लेकिन प्रत्येक वर्ण या अक्षर में एक स्वर (अ) अवश्य होता है।
स्वर की विशेषता (Swar ki Visheshta)
1. स्वर तंत्रिकाओं में आधी कम्पन से उत्तपन होते है।
2. जब स्वरों का उच्चारण किया जाता है तो मुख विवरण हमेशा खुलता है और यह स्वर की सबसे महवपूर्ण विशेषता मानी जाती है।
3. जब स्वरों का उच्चारण किया जाता है तो जीभ और ओष्ट परस्पर स्पर्श नहीं करते जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। इन स्वरों का उच्चारण करते समय आपकी जीभ और होंठ एक बार भी स्पर्श नहीं हुए।
4. व्यंजनों के बिना स्वरों का उच्चारण किया जा सकता है लेकिन बिना स्वरों के व्यंजनों का उच्चारण नहीं किया जा सकता है।
5. स्वरों में स्वरघात की क्षमता सिर्फ स्वरूप को होती है।
स्वर की लिपि
हिंदी की लिपि देवनागरी है, जिसका अर्थ हमेशा – ‘देवो की नगरी की लिपि’ मन जाता है। प्रश्न यह है की अगर हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है तो क्या हिंदी भाषा के स्वरों की लिपि भी देवनागरी है?
इस साधारण सा उत्तर है कि – हाँ, हिंदी भाषा के स्वरों की लिपि भी देवनागरी ही है क्यूंकि जिस लिपि में भाषा को लिखा जायेगा तो उसी लिपि के ही स्वर होंगे। लेकिन हम किसी अन्य भाषा को किसी अन्य भाषा के स्वरों की लिपि से भी लिख सकते है।
जैसे हम हिंदी को अंग्रेजी लिपि में भी लिख सकते है जैसे – mera nam nikesh hai.
उपयुक्त उदहारण में मैंने हिंदी भाषा को अंग्रेजी लिपि में लिखा है, लेकिन जब किसी भाषा को उसकी लिपि में न लिखकर किसी अन्य लिपि में लिखा जाता है तो उसके सिर्फ स्वर और व्यंजन बदलते है उसका अर्थ वही रहता है।
जैसे – मैं कल शिमला से आ गया। main kal shimla se aa gaya
उपयुक्त उदहारण में मैंने सिर्फ लिपि बदली है लेकिन वाक्य का अर्थ वही है।